”पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होओगे खराब”- यह कहावत आज निराधार हो गई है । माता-पिता आज जान गए है कि बच्चों के मानसिक विकास के साथ शारीरिक विकास भी होना चाहिए ।
पढ़ाई/लिखाई प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन वहीँ खेलना कूदना भी शारीरिक विकास (एवं मानसिक विकास भी) के लिए अति आवश्यक है | अधिकतर लोग ऐसा सोचते हैं कि एक बार बच्चा पढ़-लिख गया तो बस समझो जीवन सफल हो गया | अधिकतर छात्र ऐसा सोचते हैं कि परीक्षा में सर्वोच्च अंक लाने से जीवन में आगे सफलता ही सफलता मिलेगी | अधिकतर लोग बच्चों का मैदान/खुले में खेलने को समय कि बर्बादी मानते हैं और आँखों पर चश्मा लिए हमेशा किताबें खोल कर बैठे बच्चों को पढ़ाकू कर लायक मानते हैं |
ये सभी मान्यताएं गलत हैं | वर्ष भर किताबें घोट कर पढ़ना और परीक्षा में उसे वैसे का तैसा उलटी कर आना कैसी योग्यता की निशानी हुई भाई? एक समझदार इंसान बनाना चाहते थे अथवा एक टेपरिकॉर्डर ? जो अक्षरशः वैसे का वैसे ही रटता रहे? खुले में खेलने वाले बच्चे शारीरिक रूप से जितने स्वस्थ बनते हैं, वैसा स्वास्थ आज आप जिम आदि में घंटों मेहनत करने के बाद भी नहीं बना सकते हैं |
वैज्ञानिक भी मानते हैं कि पार्क जैसे खुले मैदानों(मिटटी) में खेलने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है | अंग्रेजी की मशहूर कहावत है : “All work and no play, makes Jack a dull boy ” .पढ़ाई के साथ साथ खेलने-कूदने के लिए समुचित समय और अवसर मिले तो बच्चों का सम्पूर्ण विकास आसानी से होता है | व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन तन और मन रूपी गाड़ी से चलता है । व्यायाम, खेल शारीरिक विकास करते हैं तथा शिक्षा, चिन्तन-मनन से व्यक्ति का मानसिक विकास होता है । खेल के अनेक रूप हैं- कुछ खेल बच्चों के लिए होते हैं, कुछ बड़ों के लिए, कुछ बड़ों के लिए, कुछ वृद्धों के लिए होते हैं ।
‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है ।’ जो बच्चे केवल पढ़ना ही पसन्द करते हैं खेलना नहीं, देखा जाता है कि वे चिड़चिड़े आलसी या डरपोक हो जाते हैं, यहां तक कि अपनी रक्षा करने में असमर्थ रहते हैं । जो पढ़ने के साथ-साथ खेलों में भी भाग लेते हैं वे चुस्त और आलस्य रहित होते हैं । उनकी हड्‌डियां मजबूत और चेहरा कान्तिमय हो जाता है, पाचन-शक्ति ठीक रहती है, नेत्रों की ज्योति बढ़ जाती है, शरीर वज्र की तरह हो जाता है । छात्र जीवन में केवल खेलते या पढ़ते ही नहीं रहना चाहिए अपितु उद्देश्य होना चाहिए खेलने के समय खेलना और पढ़ने के समय पढ़ना- ”Work while Your you work, play while you play”. मनुष्य को जो पाठ शिक्षा नहीं सिखा पाती वह खेल का मैदान सिखा देता है । जैसे- खेल खेलते समय अनुशासन में रहना, नेता की आज्ञा का पालन करना, खेल में जीत के समय उत्साह, हारने पर सहिष्णुता तथा विरोधी के प्रति प्रतिरोध का भाव न रखना, अपनी असफलता का पता लगने पर जीतने के लिए पुन: प्रयत्न करना आदि सिखाता है । अतः, पढ़ाई और खेल-कूद का समुचित मिश्रण ही किसी भी बालक के समुचित विकास को सुनिश्चित करता है |